सुप्रीम कोर्ट ने एक महत्वपूर्ण फैसले में व्यवस्था दी है कि है इग्नू (इंदिरा गांधी नेशनल ओपन यूनीवर्सिटी) से दूरस्थ शिक्षा के माध्यम से किए गए बीटेक डिग्री- डिप्लोमा कोर्स के लिए एआईसीटीई (अखिल भारतीय तकनीकी शिक्षा परिषद) की मंजूरी लेने की जरूरत नहीं है।
यह आदेश जस्टिस रोहिंग्टन फाली नारीमन और इंदु मल्होत्रा की पीठ ने इग्नू के 20 से ज्यादा डिप्लोमा और डिग्रीधारी छात्रों की रिट याचिका पर दिया। मुकुल कुमार शर्मा आदि याचिकाकर्ताओं ने मांग की थी कि सर्वोच्च अदालत आदेश दे कि इग्नू से मुक्त और दूरस्थ शिक्षा के माध्यम से किए गए डिप्लोमा-डिग्री पाठ्यक्रम वैध हैं। साथ ही ये कोर्स अन्य नियमित विश्वविद्यालयों या एआईसीटीई से मान्यता प्राप्त संस्थानों से किए गए कोर्स के बराबर हैं।
पीठ ने अपने आदेश में स्पष्ट किया कि यह मामला जवाहर लाल नेहरू तकनीकी विश्वविद्यालय बनाम टीसीटी निदेशक, तेलंगाना के मामले में 10 अप्रैल को निर्णित किया गया है। इस आदेश में स्पष्ट किया गया था कि विश्वविद्यालय राज्य द्वारा स्थापित किया गया है, इसलिए यह काफी है कि विश्वविद्यालय बीटेक और डिप्लोमा के लिए एआईसीटीई मानकों का पालन करे।
पीठ का आदेश पिछले साल दिए गए आदेश से उलट
कोर्ट ने कहा कि यह आदेश इग्नू के मामले में भी लागू होगा जो संसद के कानून द्वारा स्थापित की गई है। इसमें एआईसीटीई के मानकों का सख्ती से पालन किया जाएगा, लेकिन बीटेक डिग्री और डिप्लोमा के एआईसीटीई की मंजूरी लेने की जरूरत नहीं होगी। गौरतलब है कि इस पीठ का आदेश गत वर्ष नवंबर में दिए गए आदेश के उलट है, जिसमें जस्टिस आदर्श गोयल और यूयू ललित की पीठ ने दूरस्थ शिक्षा के माध्यम से डीम्ड टू बी विश्वविद्यालय से बीटेक को अमान्य करार दे दिया था और कहा था कि विश्वविद्यालय को पहले एआईसीटीई की मंजूरी लेनी आवश्यक है।