साल 2010 के बाद भारतीय मुक्केबाजों को नहीं मिला गोल्ड

साल 2010 के बाद भारतीय मुक्केबाजों को नहीं मिला गोल्ड

एशियाई खेलों में भारत का मुक्केबाजी में अच्छा रिकॉर्ड रहा है। लेकिन 2010 के बाद से भारतीय मुक्केबाजों के हाथ स्वर्ण पदक नहीं लगा है। ऐसे में मुक्केबाजों पर फिर इतिहास रचने और अच्छा प्रदर्शन करने का दबाव रहेगा। सौरभ कुमार गुप्ता की रिपोर्ट….

विकास पर इतिहास दोहराने का दारोमदार-
भारतीय चुनौती का दारोमदार 26 वर्षीय अनुभवी मुक्केबाज विकास कृष्णा पर रहेगा। विकास ने 2010 में स्वर्ण पदक हासिल कर इतिहास रचा था। हालांकि तब वह लाइटवेट में खेलते थे। पर अब वह मिडिलवेट में खेलते हैं। 2014 में मनोज ने मीडिलवेट वर्ग में भी कांस्य पदक जीता था। हालांकि भारतीय दल को मनोज से एकबार फिर स्वर्ण पदक की अपेक्षा है।

गौरव पर निगाहें-
गोल्ड कोस्ट 2021 राष्ट्रमंडल खेलों में फ्लाइवेट वर्ग में स्वर्ण पदक जीतने वाले गौरव सोलंकी पर भी सभी की निगाहें टिकी हैं। 21 वर्षीय गौरव को पदक का प्रबल दावेदार माना जा रहा है।

फ्लैश बैक-
हवा सिंह सर्वश्रेष्ठ मुक्केबाज-
एशियाई खेलों में सर्वश्रेष्ठ भारतीय मुक्केबाज का तमगा हवा सिंह के नाम हैै, जिन्होंने यहां दो स्वर्ण पदक जीते हैं। हवा सिंह ने पहला स्वर्ण 1966 बैंकॉक खेलों में पाक के अब्दुल रहमान को हराकर जीता था। दूसरा स्वर्ण उन्होंने 1970 में ही बैंकॉक में ईरान के उमरान हतामी को हराकर जीता था। वह एशियाड में दो स्वर्ण जीतने वाले एकमात्र भारतीय मुक्केबाज हैं।

पदम बहादुर ने भारत को पहला स्वर्ण दिलाया था-
भारत को मक्केबाजी में पहला स्वर्ण पदक दिलाने का श्रेय पदम बहादुर को जाता है। उन्होंने लाइटवेट 60 किग्रा वर्ग में 56 साल पहले 1962 जकार्ता एशियाई खेलों में यह कारनामा किया था। उन्होंने फाइनल में जापान के मुक्केबाज कानेमारू को शिकस्त दी थी।

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