दक्षिण से दोगुनी बिजली गुल

दक्षिण से दोगुनी बिजली गुल

दक्षिण भारत के मुकाबले उत्तर भारत में दोगुनी बिजली गुल होती है। आंध्र प्रदेश और तेलंगाना में जहां एक माह में सिर्फ साढ़े चार घंटे बिजली गुल रहती है, वहीं उत्तर प्रदेश में पौने नौ घंटे बिजली कटौती होती है। झारखंड में तो एक माह में करीब 96 घंटे यानि पूरे चार दिन तक बिजली गुल रहती है।

ऊर्जा मंत्रालय के आंकड़े के मुताबिक, केरल और गुजरात में बिजली कटौती भी काफी कम होती है। जबकि यूपी, बिहार और झारखंड की हालत खराब है। मंत्रालय के डैशबोर्ड ‘ऊर्जा’ के मुताबिक केरल में मई माह में जहां औसतन सिर्फ 1.8 बार बिजली गई। जबकि यूपी में 6.53 बार, बिहार में 28 बार, उत्तराखंड में 51 और झारखंड में 93 बार बिजली गई। हालांकि, इस मामले में आंध्र प्रदेश यूपी से पीछे है। आंध्र प्रदेश में माह में नौ बार बिजली गुल हुई।

चोरी कम होने से दक्षिण भारत में अच्छी स्थित
उत्तर भारत के मुकाबले दक्षिण भारत में बिजली की स्थिति बेहतर होने की कई वजह है। इनमें सबसे अहम वजह बिजली नुकसान और चोरी का बेहद कम होना है। आंध्र प्रदेश में 10 प्रतिशत, जबकि तमिलनाडु, केरल, कर्नाटक और तेलंगाना में 15 फीसदी के आसपास बिजली नुकसान और चोरी है।

यूपी में बिजली नुकसान और चोरी 29 फीसदी
वहीं यूपी में  बिजली नुकसान और चोरी 29 फीसदी है। जबकि उत्तराखंड में 25 प्रतिशत व बिहार में 31 प्रतिशत है। झारखंड ने बिजली चोरी का आंकड़ा उपलब्ध नहीं कराया है। शायद यही वजह है कि अधिकतम मांग के वक्त दक्षिण में मांग और आपूर्ति में कोई अंतर नहीं होता। बिजली वितरण कंपनियां उपभोक्ताओं की मांग के अनुसार बिजली उपलब्ध कराती हैं।

राष्ट्रीय औसत
बिजली कटौती (घंटे/प्रति माह)    – 7.52
बिजली कटौती (संख्या/ प्रति माह) – 11.4
बिजली नुकसान/ चोरी                 – 21.8

बिजली कटौती (घंटे/प्रति माह)
गुजरात   –  1.49 (घंटे/प्रति माह)           उत्तर प्रदेश – 8.43 (घंटे/प्रति माह)
आंध्र प्रदेश – 4.33 (घंटे/प्रति माह)           बिहार      – 11.52 (घंटे/प्रति माह)
तेलंगाना   – 4.43 (घंटे/प्रति माह)          उत्तराखंड   – 23.23(घंटे/प्रति माह)
केरल      – 8.01 (घंटे/प्रति माह)          झारखंड     – 95.21 (घंटे/प्रति माह)

बिजली नुकसान/चोरी
आंध्र प्रदेश   – 9.79 फीसदी                 उत्तराखंड – 25.02 प्रतिशत
तमिलनाडु   – 14.04 फीसदी                उत्तर प्रदेश – 29.61 प्रतिशत
केरल       – 15.25 फीसदी                  बिहार    – 31.84 प्रतिशत
कर्नाटक    –  15.40 फीसदी                 झारखंड – आंकडा उपलब्ध नहीं
तेलंगाना    –  15.86 फीसदी                 हरियाणा – 23.71 प्रतिशत
(यह सभी आंकड़े 11 केवी के फीडर से लिए गए हैं।)

स्थापित क्षमता – 3,43,899 मेगावॉट (केंद्रीय विद्युत प्राधिकरण के आंकड़ो के अनुसार)

उत्तरी क्षेत्र – 92,773.43 मेगावॉट
(दिल्ली, हरियाणा, हिमाचल, जम्मू-कश्मीर, पंजाब, राजस्थान, उत्तर प्रदेश, उत्तराखंड और चंडीगढ़)

पश्चिमी क्षेत्र – 1,11,248.99 मेगावॉट
(गोवा, दमन द्वीप, गुजरात, मप्र, छत्तीसगढ़, महाराष्ट्र व दादर नगर हवेली)

दक्षिण क्षेत्र- 1,02,514.57 मेगावॉट

(आंध्र प्रदेश, तेलंगाना, कर्नाटक, केरल, तमिलनाडु व पुडुचेरी)

पूर्वी क्षेत्र – 33,282.16 मेगावॉट

(बिहार, झारखंड, पश्चिम बंगाल, ओडिशा और सिक्किम)

पूर्वोत्तर क्षेत्र – 4026 मेगावॉट
(असम, अरुणाचल प्रदेश, मेघालय, त्रिपुरा, मणिपुर, नागालैंड व मिजोरम)

अधिकतम बिजली की मांग और आपूर्ति में अंतर (मई 2021- अंतरिम)
क्षेत्र                 मांग              आपूर्ति           अंतर       प्रतिशत
उत्तरी क्षेत्र         54411            53441            1000        1.8
पश्चिमी क्षेत्र      53817           52418             1399        2.6
दक्षिणी क्षेत्र      43573           43573              00          00
पूर्वी क्षेत्र         21209         21209                 00         00
उत्तरपूर्वी क्षेत्र      2709         2611                   98           3.6
(सभी आंकड़े मेगावॉट में, केंद्रीय विद्युत प्राधिकरण की मई माह की रिपोर्ट के अनुसार)

राष्ट्रीय स्तर पर प्रति व्यक्ति बिजली खपत
2014-15     1010 किलोवॉट घंटा
2015-16     1075 किलोवॉट घंटा
(केंद्रीय विद्युत प्राधिकरण के आंकड़ों के मुताबिक)

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