चीन में जिलेटिन की मांग की वजह से अफ्रीकी देशों से काला बाजारी के जरिए गधों की खाल को चीन भेजा जा रहा है। इस वजह से अफ्रीका के लोगों को परेशानियों का सामना करना पड़ता है। यहां काफी संख्या में लोग कृषि कार्यों और भारी सामानों की ढुलाई के लिए गधों पर निर्भर होते हैं।
हाल ही में यहां जोसेफ कामोनजो कारियूकी के तीन गधे लापता हो गए थे और बाद में इन सब के अवशेष बरामद हुए। केन्या से लेकर बुरकिनी फासो , मिस्र से लेकर नाइजीरिया तक के पशु अधिकार समूहों का कहना है कि गधे के खाल की कालाबाजारी करने वाले चीन में जेलिटिन की मांग को पूरा करने के लिए गधों को मारकर उनकी खाल को निकालते हैं। जिलेटिन गधे की खाल से बनता है और इसका इस्तेमाल स्वास्थ्य क्षेत्र में होता है।
पिछले साल आई एक रिपोर्ट के अनुसार चीन में 30 साल पहले गधों की आबादी 1.1 करोड़ थी, जो अब दो तिहाई घटकर 30 लाख रह गई है। गधों की आबादी बढ़ाने पर भी सरकार ध्यान नहीं दे रही है। दरअसल, चीन लंबे समय से जानवरों की हड़्डियों और खालों से दवा तैयार करता रहा है। इसें बाघ की हड्डियों, शार्क का सूप और हाथी दांत का इस्तेमाल शामिल है। गधों की खालों को भी उबालकर ई जियाओ नाम की दवा बड़े पैमाने पर बनाई जा रही है। पशु अधिकार कार्यकर्ताओं का कहना है कि चीन में गधों की संख्या में कमी आने से अब इसकी आपूर्ति अफ्रीका , ऑस्ट्रेलिया और दक्षिण अमेरिका से हो रही है।
गधों की खाल से बना रहे दवा
गधे की खाल से बनने वाली दवा ई जियाओ की मांग पिछले आठ सालों में से दोगुनी हो गई है। नेशनल ई जियाओ एसोसिएशन के मुताबिक, 2015 में इस दवा का करीब 68 लाख किलोग्राम उत्पादन हुआ। कभी यह दवा अमीरों को ही मुहैया थी, क्योंकि एक गधे से करीब एक किलो ही ई जियाओ मिल पाती है।
सोने से भी ज्यादा महंगी दवा
18-19 सौ सालों से चीन में गधों को ई जियाओ दवा तैयार की जा रही
3200 रुपये से ज्यादा एक ग्राम दवा की कीमत
महिलाओं की प्रजनन संबंधी तमाम समस्याओं में इसका इस्तेमाल
डिमेंशिया, नपुंसकता और श्वसन संबंधी समस्याओं में इसका इस्तेमाल