गूगल पर मरने के तरीके खोज रहे शरणार्थी बच्चे

गूगल पर मरने के तरीके खोज रहे शरणार्थी बच्चे

दुनिया के कई देश शरणार्थी समस्या का सबसे ज्यादा असर बच्चों पर पड़ रहा है। समस्या के चलते बच्चे इतने परेशान हैं कि वे गूगल पर मरने के तरीके खोज रहे हैं। ऑस्ट्रेलिया व्हिसल ब्लोअर वेरनॉन रिनॉल्ड्स ने बताया कि जून में नाउरू आप्रवासन केंद्र में रह रहे 14 वर्षीय रिफ्यूजी बच्चे ने खुद पर पेट्रोल छिड़क कर जान देने की कोशिश की।

वहीं एक अन्य मामले में 10 वर्षीय बच्चे ने खुद को नुकसान पहुंचाने के लिए नुकीली धातु को निगल लिया। स्वास्थकर्मी के रूप में काम कर चुके वेरनॉन रिनॉल्ड्स ने बताया कि नाउरू आप्रवासन केंद्र में रहने वाले बच्चे खुद को मारने और नुकसान पहुंचाने के तरीके गूगल पर सर्च कर रहे हैं। रिनॉल्ड्स अगस्त 2016 से लेकर अप्रैल 2021 तक इस द्वीप पर बतौर बाल मनोचिकित्सक काम कर चुके हैं। वह इंटरनेशनल हेल्थ एंड मेडिकल सर्विसेज (आईएचएमएस) से जुड़े थे। यह एजेंसी ऑस्ट्रेलिया सरकार के लिए एक करार के तहत काम करती है।

बच्चों में गंभीर आघात के संकेत 
रिनॉल्ड्स ने बताया कि वह बच्चों के लिए काफी चिंतित हैं, उन्हें डर है कि बच्चे मर भी सकते हैं। रिनॉल्ड्स की मानें तो बच्चों में गंभीर आघात के संकेत मिल रहे हैं। हाल के हफ्तों में नाउरू में ये चिंताएं और बढ़ी हैं। यहां बच्चों में सब कुछ छोड़ने की प्रवृत्ति घर कर रही है। यह सिंड्रोम बच्चों को बेहोशी की हालत तक ले जा सकता है।

नाउरू आप्रवासन केंद्र में 120 बच्चे हैं
नाउरू आप्रवासन केंद्र में तकरीबन 900 रिफ्यूजी और शरणार्थी रहते हैं। इसमें  120 बच्चे भी हैं। संयुक्त राष्ट्र के आंकड़ों के मुताबिक तकरीबन 40 बच्चों ने नाउरू के इस केंद्र में अपनी जिंदगी गुजार दी, वहीं अन्य 60 ने अपनी आधी जिंदगी यहां काटी है। इस मसले पर ऑस्ट्रेलियाई सरकार के आप्रवासन और सीमा सुरक्षा के लिए जिम्मेदार, डिपार्टमेंट ऑफ होम अफेयर्स की ओर से अब तक कोई प्रतिक्रिया नहीं आई है।

ज्यादातर बच्चे मरने के बारे में सोचते हैं
आईएचएमएस की ओर से नियुक्त एक अन्य सामाजिक कार्यकर्ता फियोना ओवेन्स भी कुछ ऐसी ही चिंताएं प्रकट की हैं। फियोना मई से जुलाई 2021 के दौरान यहां चाइल्ड मेंटल हेल्थ टीम का नेतृत्व कर रहीं थीं। उन्होंने भी रिफ्यूजी बच्चों में खुद को नुकसान पहुंचाने की उभरती प्रवृत्तियों को देखा। उन्होंने बताया कि जिस एक चीज के बारे में वहां अधिकतर बच्चे सोचते हैं, वह है कि कैसे मरा जाए।

ऑस्ट्रेलिया में शरणार्थिों के लिए बेहद कड़ी नीति
समुद्री रास्ते से ऑस्ट्रेलिया आने वाले शरणार्थियों के खिलाफ बेहद ही कड़ी नीति का पालन करता है। वह जुलाई 2013 से ऑफशोर इमीग्रेशन की नीति को अपनाते हुए इन शरणार्थियों को पापुआ न्यू गिनी के मानुस द्वीप और दक्षिणी प्रशांत के नाउरू द्वीप में बसा रहा है। साल 2016 में ऑस्ट्रेलिया ने अमेरिका के साथ एक समझौता किया, जिसके तहत नाउरू और मानुस द्वीप के 1250 रिफ्यूजियों को बसाया जाएगा।

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