नेशनल हेल्थ प्रोफाइल 2021 के मुताबिक मौजूदा एनडीए सरकार के कार्यकाल में स्वस्थ्य पर सरकारी खर्च में उल्लेखनीय वृद्धि हुई है। स्वास्थ्य कर्मियों की संख्या भी गत तीन साल में बढ़ी है। लेकिन अब भी चुनौतियां बरकरार है।
साल-दर साल बढ़ा बजट
– 1,112 रुपये प्रति व्यक्ति स्वास्थ्य बजट था 2015 में
– 1397 रुपये प्रति व्यक्ति बजट हुआ 2016 में
– 2017 में प्रति व्यक्ति सरकारी खर्च बढ़कर 1657 रुपये हुआ
सेहत कर्मियों की संख्या भी बढ़ी
डेंटल सर्जन
वर्ष डॉक्टरों की संख्या आबादी प्रति एक डॉक्टर
2015 6,051 2,11,002
2016 6328 1,98,730
2017 7239 1,76,004
एलोपैथी डॉक्टर
2015 1,06,987 11,879
2016 1,13,328 11,097
2017 1,14,969 11,082
वर्ष | आयुष डॉक्ट | फार्मासिस्ट | नर्स |
2015 | 7,44,563 | 6,73,563 | 26,39,229 |
2016 | 7,71,468 | 7,41,548 | 27,78,248 |
27,78,248 7,73,668 9,07,132 28,78,182
सरकारी अस्पतालों का हाल
वर्ष अस्पताल बिस्तर
2016 14,379 6,34,879
2017 23,582 7,10,761
मौसमी बीमारियों में मौतों का घटा आंकड़ा
वर्ष इंसेफ्लाइटिस मलेरिया डेंगू
2015 1210 384 220
2016 1301 331 241
2017 1010 253 104
बढ़ रही जागरूकता
– 34 फीसदी आबादी मौजूदा समय में किसी न किसी स्वास्थ्य बीमा से कवर है।
– 50 करोड़ आबादी को आयुष्मान भारत के तहत स्वास्थ्य बीमा देने का लक्ष्य।
और खर्च बढ़ाने की जरूरत
सरकार ने तीन साल में स्वास्थ्य बजट में काफी वृद्धि की है। यही वजह है कि जहां 2015 में जीडीपी का 1.02 फीसदी सेहत पर खर्च किया गया। वह 2017 में बढ़कर 1.28 फीसदी के स्तर पर पहुंच गया। लेकिन अब भी यह नाकाफी है। यही वजह है कि सरकार सेहत पर खर्च को जीडीपी के दो फीसदी के स्तर पर ले जाना चाहती है।
यह भी चुनौती
डब्ल्यूएचओ के मुताबिक 67.78 फीसदी सेहत हुआ खर्च लोगों को खुद वहन करना पड़ता है। जबकि वैश्विक स्तर पर यह औसत 18.2 फीसदी है।
दुनिया के अन्य देशों का हाल
देश सेहत पर खर्च (फीसदी जीडीपी का)
स्वीडन 9.2
फ्रांस 8.7
डेनमार्क 8.7
अमेरिका 8.5
ब्रिटेन 7.9